प्रेम-अगन
जनवरी की कड़कड़ाती ठण्ड के बाद फ़रवरी की गुनगुनाती धूप के आँचल में बसंती पवन की मदमस्त चाल दीवानगी के रोग की एक मशहूर वज़ह पाई जाती है, ऐसे में जनवरी के माह में मकर संक्रांति के त्यौहार में आसमान में उड़नें वाली पतंगों की ओट में नैनों के पेंच इस छत से उस छत पर दिखाई देना बहुत ही मनोरम दृश्य रहता रहा है, ये सिलसिला यूँ ही मार्च महीने के होली के रंगीन नजारों तक अनवरत जारी रहता है | वैसे एक बात तो गौरतलब है कि इंसान हो या और कोई जीव सभी के मन को बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के प्रीत का एहसास एक अज़ीब से नशे में डूबने को मजबूर कर देता है, जिसमें चार जोड़ी आँखों की गुस्ताखियों की हमेशा से ही बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका पाई जाती रही है, इन सबमें अक्सर पड़ोसिनें अक़्सर खूबसूरत ही होती हैं और फिर अनेक वज़हों से , कई रिश्तों-नातों की बोलियों-ठिठोलियों की दियासलाई से न जानें कब, कैसे प्रेम -अगन की ज्वाला किसी के भी मन को भीतर ही भीतर जलाने लगे ये कोई नहीं जान सकता| ठीक इसी तरह अपनी कुछ उलझनों का हल पाने को बेताब, अनेकों जिज्ञासाओं को लेकर नादिरा ने अपनी सखी राधा से अपनी...