Thursday 12 February 2015

जीवन का विश्वास

धरती ने नित परहित विकसित किये नवांकुर है
परहित जीवन जियें सार्थक वरन क्षणभंगुर है

मलयज के संग-संग चले अगर
जीवन की श्वांस बने,
कलकल करती नदियों के संग
जीवन का विश्वास बने,
सृष्टि का कण -कण देखो परहित में खुद आतुर है

सर्वस्व दिया नदियों ने फिर
क्यों सागर खारा सदियों से,
परहित प्रेम धरोहर जीवन
चलता रहता नदियों से,
अम्बर छलकाये घन-गागर प्रमुदित अंकुर है

प्रमादित नयनों के सपन-तितिक्षा
जब सुख आधार बने,
हृदय विचलित होता जब
प्रीति भी जगत व्यापार बने
जग-हित बरसे जो बादल अब धरती मधुर है
---- निरुपमा मिश्रा " नीरु "

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