इंद्रधनुष (Rainbow)
मन के बोल पर जब जिंदगी गहरे भाव संजोती है, विह्वल होकर लेखनी कहीं कोई संवेदना पिरोती है, तुम भी आ जाना इसी गुलशन में खुशियों को सजाना है मुझे, अभी तो अपनेआप को तुझमें पाना है मुझे
Tuesday 13 July 2021
मन की पीड़ा झुठलाई
Saturday 27 March 2021
सतरंगी प्रीत
Saturday 28 March 2020
पलायन
Wednesday 25 March 2020
धरती का उल्लास
Tuesday 24 March 2020
कोरोना का कहर
Tuesday 1 May 2018
औरत की आँखों से दुनिया
औरत की आँखों से दुनिया
यही तो गड़बड़ी है
कि औरतों की आँखों से दुनिया
नहीं देखी जाती
तभी तो करुणा-दया-ममत्व
रहित हुआ संसार
हिंसा, चोरी, डकैती, अनाचार
लूट- खसोट और मक्कारी का
पसरा चौतरफा साम्राज्य है
माँ.. एक रोटी दे दो
यदि कोई मांग बैठे
दुनिया के किसी भी
मुल्क की औरत को
यह शब्द ममत्व से भर देने
के लिए काफी है..
औरत का आँचल
घर, परिवार, गली,मोहल्ला
बस्ती, गाँव शहरों
देश की सीमाएं लांघता
धरती से लिपट
आकाश में लहराता
अनंत तक फैला हुआ है
लेकिन उसे देखने के लिए
औरत की आँखें होना भी ज़रूरी है
----- नीरू
Friday 6 April 2018
समाज की आत्मा- शिक्षा
शिक्षा हमारे समाज की आत्मा है जो कि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को दी जाती है अतः शिक्षा का एक उद्देश्य एक खाली दिमाग को एक खुले दिमाग में बदलना होता है|
हमारे भारत देश में शिक्षा के सोपान क्रमशः इस प्रकार निर्धारित किये गए हैं -- (1) प्री प्राइमरी ( 2) प्राइमरी(3) सेकेंडरी ( 4) उच्च शिक्षा... इस तरह से एक सच ये भी है कि ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकतर प्राइमरी स्तर की शिक्षा ही अधिक सुलभ दिखती है बल्कि जिन क्षेत्रों में अपेक्षाकृत अधिक विकास है वहां माध्यमिक शिक्षा और उच्च शिक्षा के साधन उपलब्ध हो पाते हैं |
यदि हम तुलनात्मक रूप से देखते हैं तो पश्चिम के देशों में बुनियादी शिक्षा के रूप में " किंडर गार्डन to 12" के प्रारूप को किसी भी व्यक्ति को एक जिम्मेदार और जागरूक नागरिक बनाये जाने के संदर्भ में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता है | सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना - 2011 के अनुसार हमारे भारत देश में लगभग 36 प्रतिशत ग्रामीण जनता निरक्षर है अतः ये निरक्षर भारतीय जनसंख्या हमारे देश के पड़ोसी देश पाकिस्तान की कुल आबादी से दुगुनी मानी जा सकती है|
जहाँ एक ओर पश्चिम के देश किंडर गार्डन टू 12 की अवधारणा को लेकर अपने जागरूक नागरिकों की पीढ़ी विकसित करते जा रहे हैं वहीं विडम्बना ये है कि हमारे देश में अभी भी अक्षर ज्ञान को शिक्षा की कसौटी मानने की मजबूरी विकास के रास्ते में खड़ी हो जाती है इसके कारण अनेकों हो सकते हैं मगर प्रायः प्रमुख कारण तो यही हो सकता है कि हमारी ग्रामीण शिक्षा मूल रुप से सरकारी सुविधाओं पर ही अधिक निर्भर है इस तरह से सरकारी कार्यक्रमों पर निर्भर ग्रामीण शिक्षा के उन्नयन के लिए निजी पूंजी निवेश की भी आवश्यकता महसूस की जाती रही है| शिक्षा पर पूंजी निवेश का लाभ सदैव देर से ही मिलता है अतः जिन माँ-बाप के पास धन-संपदा के स्त्रोत मौजूद हैं वो तो अपने बच्चों को व्यवसायिक शिक्षा के लिए प्रेरक सिद्ध होते है लेकिन जिन माँ-बाप के पास दो जून की रोटी का जुगाड़ भी बड़ी मशक्कत के बाद हो पाता हो उनके लिए उच्च शिक्षा अक्सर एक दिवास्वप्न साबित होता है|
राज्य सरकारों की साझेदारी और केंद्र सरकार के द्वारा आयोजित-प्रायोजित और क्रियान्वित प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में सर्व शिक्षा अभियान ने तो प्रारम्भिक शिक्षा को सफलतापूर्वक सर्वव्यापी बना ही दिया है साथ ही साथ आगे भी नित नये- नए व्यापक दृष्टिकोण के साथ रणनीतियों को साकार करने की दिशा में विचार विमर्श और नियम निर्धारित किये जा रहे हैं ,इसमें प्रमुख रूप से छात्रों और शिक्षकों का आधार संख्या आधारित डाटा तैयार कराना है इससे जिन बच्चों की पढ़ाई बीच में ही छूट जाती है उन्हें पहचानना और पुनः शिक्षा से जोड़ पाना अधिक आसान हो जाएगा तथा सरकारी सुविधाओं के वितरण में , सबकी नियमित उपस्थिति में आशाजनक पारदर्शिता के साथ निगरानी सम्भव होगी |
उक्त विवेचित बिंदुओं के अवलोकन के बाद विचार करने पर एक बात और सामने आती है कि अब शिक्षा के अधिकार अधिनियम के अनुसार शिक्षा तो बाल केंद्रित है लेकिन जैसा कि भारतीय संसद द्वारा सन 2009 में " शिक्षा का अधिकार" कानून पास हो जाने के बाद प्राइवेट स्कूलों में 25 फीसदी आरक्षण गरीब परिवार के बच्चों के दाखिले के लिए निर्धारित हुआ और दाखिले हुए भी तो शिक्षा केंद्रित भारतीय NGO " प्रथम" की सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक शिक्षा का अधिकार लागू होने के बाद स्कूलों और नामांकन संख्या दोनों में बढोत्तरी भी हुई है फिर भी लोग प्राइवेट स्कूलों की तरफ़ आकर्षित क्यों होते हैं इसका विश्लेषण करने पर जो तथ्य सामने आता है वो यह कि प्राइवेट स्कूल के टीचर्स का काम सिर्फ़ पढ़ाना ही होता है और सरकारी स्कूलों के शिक्षकों के पास अनेक विभागों से सम्बंधित गैर - शैक्षणिक कार्यों को भी पूरा करने की विशेष जिम्मेदारी होती है |
शिक्षकों की नित प्रतिदिन बढ़ती हुई जिम्मेदारियों के मद्देनज़र शिक्षकों की भी सरकार से हमेशा ये आशा और विश्वास बना ही रहेगा कि उनके बाद उनके परिवार की आजीविका और शिक्षा के साधन सुलभता से प्राप्त हो सकें क्योंकि पेंशनविहीन, एकल विद्यालयों के संचालन के साथ ही सरकारी योजनाओं में पूर्णता हेतु सफलतापूर्वक सहयोग इन्हीं सरकारी प्राइमरी स्कूलों के मास्टरों के द्वारा किया ही जाता रहा है और अब जबकि विद्यालयों का पूर्णं संचालन विद्यालय प्रबंध समिति के सदस्यों के द्वारा होता है जिनके बच्चे भी उसी विद्यालय में शिक्षा प्राप्त करके अपने उज्जवल भविष्य में अपने शिक्षकों से ही शिक्षित और संस्कारित होते हैं तो सरकारी शिक्षण संस्थानों में भी तनावमुक्त अध्यापन के लिए निरन्तर सेवारत शिक्षकों को व्यक्तिगत और पारिवारिक सुविधाओं- सुरक्षा का लाभ दिए जाने पर ध्यान देने की आवश्यकता महसूस की जाने लगी है , शिक्षा के अधिकार अधिनियम के अनुसार अब बाल केंद्रित शिक्षा प्रणाली है अतः हम सभी की ये सामूहिक और नैतिक जिम्मेदारी स्वयं निर्धारित हो जाती है कि बाकी सभी उद्देश्य की प्राप्ति के साथ ही शिक्षा के प्रथम दो उद्देश्य - (1) बुद्धिमत्ता ( 2) चरित्र के लिए हम सभी मिलकर सकारात्मक परिणाम के लिए सतत प्रयास करते रहें |
----- निरुपमा मिश्रा
Monday 2 April 2018
फिर मिलेंगे
शून्य में निहारती
शाम के धुंधलके में
देखती रही मैं एकटक
क्षितिज के पार जाते सूरज को....
एक दिन इसी पीताम्बरी छाया के तले
कहीं दूर नील गगन की छांव में
सपने बुनते-गुनगुनाते
फिर मिलेंगे हम और तुम....
और हाँ, सुनूंगी मैं दिल से
तुम्हारी वही बातें
जिनको मैं सुना ही करती रही हूँ
बार-बार.. हजारों बार
Wednesday 14 February 2018
नया सवेरा आयेगा
पश्चिम में
अरबों-खरबों रश्मियों वाला रथ
जा पहुंचा है....
अगली सुबह का इंतजार करो
सूरज डूबने को है
सितारों-भरी रात आने को है....
आसमान में एक तारा
और फिर प्रकट होंगे
असंख्य तारे
इंतजार करो....
चाँद की बारात
झींगुरों की झंकार
एक्का-दुक्का चिड़ियों के
गीत के साथ
सुर में सुर मिलाने को है....
रात-दिन का यह कारोबार
चला करता है
हमेशा इसी तरह....
--- नीरु
Tuesday 23 January 2018
बाल-अपराध , कारण एवं निवारण
बच्चे अपने माता-पिता के लिए उनकी उम्मीद के साथ ही उनके माता-पिता के ही समान होते हैं अतः माता-पिता के समान ही ये बच्चों की भी जिम्मेदारी होती है कि वो अपने भविष्य के निर्माण के सर्वश्रेष्ठ विकल्प- आकांक्षाओं के चयन में अपनी इच्छा स्वयं चुन कर उज्जवल भविष्य का निर्माण करने में अपने माता-पिता की मदद लेते रहें और उनके माता-पिता सदैव अपने जिम्मेदारी के निर्वाह में सहयोगी की भूमिका में चूकने न पाएं बल्कि अव्वल ही रहें|
वर्तमान में बच्चों और माता-पिता के रिश्तों में दूरी जिस प्रकार बढ़ रही है उससे प्रायः देखा जाता है कि बच्चों में अनदेखी करने या कहा जाए कि लापरवाही की भावना पनपती जा रही है जिसका परिणाम यह होता है कि बच्चे अपने सम्माननीय माता-पिता की बात नहीं करते और न तो माता-पिता ही अपने बच्चों से बात करने का समय निकाल पाते हैं फलस्वरूप बच्चों का स्कूल में प्रदर्शन ख़राब होने लगता है, ऐसे में बच्चे कुंठा का शिकार होकर मानसिक रूप से नियंत्रण से बाहर होने लगते हैं |
प्रत्येक माता-पिता अपने बच्चों का भविष्य उज्जवल होता हुआ ही देखना चाहते हैं तो ऐसे में उन्हें इन समस्याओं को लेकर अधिक चिंता करने की भी ज़रूरत नहीं होती क्योंकि हर समस्या का समाधान भी होता है|
मानसिक अस्वस्थ होना सिर्फ़ बच्चों की ही नहीं बल्कि बड़ों की भी गंभीर समस्या है जो कि अपराध की पृष्ठभूमि बनाने में सहायक सिद्ध होती है और इसके लिए मानव समाज में व्याप्त व्यवस्था और सुरक्षा को निरंतर बनाये रखने में उस समाज की परिस्थितियों के साथ ही परम्पराओं का भी महत्व होता है, विभिन्न विधान के आधार पर अनेक प्रकार के नियम-कानून बना दिये जाते हैं जिनका उल्लंघन करने वाला ही अपराधी कहा जाता है |
अपराध वह कार्य है जिसके लिये राज्य को ये अधिकार होता है कि वो दंडित कर सके , इसी प्रकार बाल अपराध भी सभ्य समाज के उज्जवल भविष्य के लिए एक चिंताजनक विषय है | भारतीय विधान धारा -83 के अनुसार 12 वर्ष से कम आयु के नासमझ बच्चे अपराधी नहीं माने जा सकते हैं, जुनेवाईल जस्टिस एक्ट 1986 के अनुसार बाल/किशोर अपराधी की अधिकतम आयु 16 वर्ष होती है, इसी क्रम में बाल अपराध के उदाहरण में --- चोरी,झगड़ा, मारपीट,मद्यपान,यौन अपराध, आत्महत्या, हत्या, धोखा, बेईमानी, जालसाजी,आवारागर्दी, तोड़-फोड़ एवं छेड़खानी आदि होते हैं|
बाल-अपराध पनपने के कई कारण हो सकते हैं जिन्हें मानव-समाज बखूबी समझ सकता है क्योंकि दूसरों को उलझाना और अपना स्वार्थ पूरा करना तो आज कल मानव समाज की संस्कृति में शामिल होता ही दिखाई देता है|
बाल अपराध की रोकथाम के लिए परिक्षण काल/प्रोबेशन में रखना,सुधार-विद्यालय/सुधार-गृह, कारावास आदि के साथ ही परिवार की भूमिका में घर का वातावरण सही-स्वस्थ होना, बच्चों की उचित मांग और जेबखर्च पर नियंत्रण, सही मार्गदर्शन देना तथा विद्यालय स्तर पर योग्य शिक्षकों का सान्निध्य, प्रेम-सहानुभूति, उत्तम वातावरण, स्वतंत्रता-अनुशासन-सुविधा, पुस्तकालय और पूरा ध्यान देना चाहिए होता है|
इसी के साथ समाज एवं राज्य की भूमिका में बच्चों को राजनीतिक माहौल से दूर रखना, स्वस्थ मनोरंजन, बालश्रम पर रोकथाम तथा स्वस्थ-स्वच्छ वातावरण का निर्माण करना होता है| मनोवैज्ञानिकों के विश्लेषण में यह स्पष्ट होता है कि वयसंधि काल में समाज विरोधी व्यवहार पाया जाता है जो कि 11 से 12 वर्ष की अवस्था से शुरू होकर 13 से 14 वर्ष की आयु में चरम सीमा पर होता है | समाज विरोधी व्यवहार से तात्पर्य यह है कि दूसरे लोगों के प्रति अरुचि होना, संगठित व्यवहार का विरोध, अन्य किसी की इच्छाओं- आशाओं के विपरीत कार्य करना और दूसरों के दुःख में आनंदित होना आदि होता है|
ऐसी सभी समस्याओं के निवारण के लिए कृत्रिम निद्रा, तंत्र-मंत्र-प्रार्थना जिसका दूसरा नाम वशीकरण या हिप्नोटिज्म जैसी प्रक्रिया का प्रयोग किया जाता है किंतु सबसे उत्तम उपाय तो यही होता है कि माता-पिता स्वयं अनुशासन में रहकर अपने बच्चों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों और कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य के निर्माण में उनके मार्गदर्शन के लिए मददगार साबित होकर स्वस्थ परिवार और स्वस्थ समाज के लिए हमेशा प्रयास करते रहें |
------ निरुपमा मिश्रा त्रिवेदी ( नीरु )
Thursday 19 October 2017
अमावस की रात में
गुनगुनाये रागिनी जैसे, तुम अमावस की रात में
खिखिलाये फूल जैसे,तुम खुशबुओं की बरसात में
अमरबेल-सा प्रेम अपना, रहेगा हरदम सदियों तक
जगमगाये दीपक जैसे, तुम मन-आँगन-बारात में
---- नीरु ( निरुपमा मिश्रा त्रिवेदी)
Tuesday 26 September 2017
शान अपनी सभी तो दिखाते रहे
शान अपनी सभी तो दिखाते रहे
दर्द भी क्या कहें गुनगुनाते रहे
आपके प्यार में हम बेहया हो गये
प्यार भी क्या ज़हर सब पिलाते रहे
आपने दे दिया ग़म यही है बहुत
और क्या दे सके मुस्कराते रहे
Monday 4 September 2017
अब मिले आप
अब मिले आप भी, ज़िंदगी की तरह
रोशनी मिल गयी, बंदगी की तरह
हम नहीं बेख़बर, आपसे अब रहे
आप हैं अब हमारी,ख़ुशी की तरह
---- नीरु
Sunday 3 September 2017
आसमां वही फिर उठाकर चले
आग दिल में हमारे लगाकर चले
आसमां भी वही फिर उठाकर चले
राह में ठोकरें भी बहुत- सी लगी
हौसले हम सभी फिर जगाकर चले
देखिये तो सनम इक इधर भी नज़र
हाथ भी तो हमीं से मिलाकर चले
Wednesday 23 August 2017
शातिर निगाहें
सुबह के वक्त थोड़ी सुनसान सड़क
पर फैली गंदगी के बीच
सांवली-सलोनी काया
अपनी उम्र के हिसाब से कुछ ज़्यादा
ऊंचे कद के बांस के मुहाने पर
अपनी तनख्वाह से कई गुना ज़्यादा
तीलियों के झुंड को बांधकर तल्लीनता से
कुछ गुनगुनाती करती है साफ़-सफाई
Friday 11 August 2017
तेरी वापसी
तेरी वापसी
जूही , चमेली,कचनार
चंपा,बेला और हरसिंगार के फूल
महक उठे फिर
दिवस मास नहीं
ऐसा लगा कि सदियों बाद
तेरी वापसी हुई,
घोंसले में चिड़िया
गमकती, लरजती हवा
अंधकार में ,तल-अतल में डूबी
दिशाओं में रोशनी और
सूखी पड़ी नदी में
जल की नहीं
तेरी और तेरी ही वापसी हुई,
Monday 19 June 2017
रंग अपने बचपन के
रंग बदलती हुई दुनिया में, रंग अपने बचपन के
उम्र भले ही कितनी होगी, दिल दो रहने बचपन से
दुनियादारी के चक्कर में, ख़ुद को भी हम भूल गये
हमसे हमको मिलवाये, वो ढंग सलोने बचपन के
---- नीरु ( निरुपमा मिश्रा त्रिवेदी)