Monday 20 July 2015

राह परछाई नही

साथ चलती किसके कोई राह परछाई नही
कौन जानें मुश्किलें कब साथ में आई नही

दे गया कोई कली की आँख में सपने नये
आस में वो शाम तक यूँ ही तो मुरझाई नही

मीत हैं सुख के सभी कोई कभी दुःख में नही
भीड़ में रहते हुए क्या साथ तन्हाई नही

भूख ने छीना यहाँ  ईमान भी इंसान का
शर्म आती है मगर मजबूर टिक पाई नही

बदलते मौसम कहाँ तुमको कहा हमने कभी
देखने को असलियत तो पास बीनाई नही
------ निरुपमा मिश्रा " नीरू"

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