Thursday 19 February 2015

ऐसे क्यों निहारते हो

ऐसे क्यों निहारते हो
तुम मुझे
कि जैसे आसमान
घिरा हो बादलों से
और तुम
उनमें झिलमिलाते
चाँद जैसे ,
ये सुरमई धुंधलका
क्यों समेटता मुझे
तुम्हारे अंकपाश में,
छलकती सुधारस
प्रीति -गागर,
हृदय की अधीरता
अनायास
होती उजागर ,
दीपक की रोशनी
में नहाई
मोम- सी काया,
जलती हुई बाती -सा
प्रिय -उच्छवास
गहराया.....
-----   नीरु

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