Friday 28 April 2017

बच्चे मन के सच्चे

"ओह्ह,धूप तो बहुत तीखी है", मधुर, मगर बेबस आवाज़ के पीछे आस-पास बिखरी हुई कई निगाहें, सिमट कर देखने लगीं कि ये किसने कहा| सबने देखा तो जाना ये तो एक मध्यम कद कि सुंदर-सी सांवली सलोनी महिला के मुख से छलकी हुई शब्द लहरी है, जो अपने दो छोटे मासूम बच्चों को लिए बस स्टॉप पर अपने गंतव्य की ओर जाने वाली बस के इंतज़ार में पेड़ों की छाँव ख़ोज़ते पसीने से तर-बतर हुई जा रही थी|
   उस महिला के साथ के बच्चे भी अपनी माँ का आँचल थामें हुए कड़ी धूप से तिलमिला रहे थे, वो कभी अपनी माँ को देखते तो कभी पीछे लगी दुकानों पर टंगे हुये खिलौने आदि, कभी निगाहें दौड़ा कर चिप्स,कुरकुरे और टाफ़िज़ खोजने लगते, माँ से अपनी मांगें मनवाने के लिए बीच-बीच में कुनमुना भी रहे थे मगर माँ कड़ी धूप से अपने बच्चों को बचाने के लिए जल्दी से बस के आने की मन ही मन ही प्रार्थना करने लगी जो कि उसके मुट्ठियों के बंद होने और खुलने के साथ बुदबुदाते होंठों से सभी देखने वालों को साफ़ महसूस हो रहा था|
  बस स्टेशन से सूचना मिलने पर कि बस देर से आएगी क्योंकि रास्ते में ट्रैफ़िक बहुत है ,माँ अपने बच्चों को लेकर बगल के गन्ने वाले जूस की दुकान की छाँव में खड़ी हो गयी और अपने आँचल को बच्चों के सिर पर फैला कर बहती बेहद गर्म हवा से बचाव की कोशिश में लग गयी, इतने में उनकी मुलाकात विद्यालय से लौटती एक शिक्षिका से हुई जो अपने दोनों हाथों में थैला लिए कंधे पर बैग टांगे उनके बगल में आकर खड़ी हो गयी थी|
  अध्यापिका चुपचाप अपने सिर को अपने दुपट्टे से ढंके बच्चों की ज़िद और माँ की मनुहार देख रही थी कि तभी उस महिला के साथ की बच्ची ने अध्यापिका का हाथ थाम कर कहा कि, - "आप थोड़ा-सा झुकिए तो आपके कान में मुझे एक बात बतानी है" अध्यापिका चौंक कर देखने लगी और मुस्करा कर  पूछा "कौन -सी बात" फिर हौले से बच्ची की तरफ़ झुकी|
  " आंटी, ये जो मेरी माँ हैं न , इन्होंने आज मुझे शॉप में न, पर्पल कलर की ड्रेस नहीं दिलवाई " बच्ची ने अध्यापिका के कान में खुसफसाते हुए कहा,अध्यापिका बोली -" अरे' , बच्ची कुछ सोचते हुए फिर बोली कि -" लेकिन मुझे पिंक कलर की ड्रेस दिलवाई ,वो बहुत सुंदर लगती है , सच्ची" ,अध्यापिका बच्ची की बात सुनकर मुस्कराई , -" ये तो बहुत अच्छी बात है न" बच्ची ने अध्यापिका की बात पर अपना सिर हिलाकर मुस्कराती आँखों से हामी भरी कि " हाँ" |
   इसी तरह बच्ची थोड़ी-थोड़ी देर में कुछ सोच-सोच कर अध्यापिका के कान में अपनी बातें कहती और अध्यापिका धैर्यपूर्वक बच्ची की बातों को सुन कर ज़वाब देती, थोड़ी देर में न जाने किस बात पर अध्यापिका और बच्ची जब जोर से खिलखिला उठी तो बच्ची की माँ कुछ झेंपते हुए बच्ची की बांह थामते हुए अध्यापिका से बोली कि ,-" सॉरी आपको मेरी बिटिया बड़ी देर से परेशान कर रही है" , अध्यापिका ने बड़ी ही शालीनता और सहजता से ज़वाब दिया कि, -" ऐसा नहीं है, मुझे कोई परेशानी नहीं, बच्चे तो मन के सच्चे होते हैं, हमें उनकी बातें धीरज से सुननी और समझनी चाहिए ,नहीं तो उनका मन उदास हो जायेगा फिर वो अपनी जिज्ञासाओं का हल खोजने किसके पास जायेंगे, यही बच्चे तो हमारा भविष्य हैं" , अध्यापिका की बात सुनकर माँ के चेहरे पर बहुत ही ममतामयी, अपनत्व भरी मुस्कान खिल उठी,
 तभी बच्ची ने फिर सवाल किया कि-" क्या आप टीचर

मैंम हैं" तो अध्यापिका ने हंसते हुए ज़वाब दिया कि-" हाँ जी, मैं टीचर मैंम ही हूँ और आज से तुम्हारी मौसी भी" | 

------- नीरु (निरुपमा मिश्रा त्रिवेदी)

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