Sunday 29 November 2015

चिराग़

साथ दिल के चिराग़ जलते हैं
ये हुनर भी कमाल रखते हैं  

रात काली रही किसे है ग़म
रोशनी का वजूद रखते हैं

दे गया ख्वाब फिर नया कोई
प्यार के रंग खास सजते हैं

हो सके तो वहीं नज़र रखना
दिल कहाँ किस तरह मचलते हैं 

राज़ की बात कह गईं आँखें
आप फिर भी सवाल करते हैं
---- निरुपमा मिश्रा

Monday 16 November 2015

किससे कहें

सह रहे हम चुपचाप क्यों, बयान किससे कहें
क्यों खोया सुकून, जिस्म बेजान किससे कहें
दहशतों-नफ़रतों का आखिरी अंजाम दर्द
यहाँ  इंसान हो रहा हैवान किससे कहें 
---- नीरु (निरुपमा मिश्रा त्रिवेदी)

Saturday 14 November 2015

तितली के रंग

बचपन की प्यारी ताज़गी का ढंग  अभी बाकी है
लम्हों में  उनके जिंदगी का संग  अभी बाकी है
खो न जाये कहीं बचपन-सुकून-सपनों के बगीचे
नन्ही हथेली में तितली का   रंग अभी बाकी है
----- निरुपमा मिश्रा

Wednesday 11 November 2015

रोशनी का त्योहार

रोशनी होती दिलों में हमेशा प्यार से
मिटायें  हर ग़म का अंधेरा संसार से 
बेबसी के आँसू हों नही किसी आँख में
सीखते हम यही रोशनी के त्योहार से
----- निरुपमा मिश्रा

Tuesday 3 November 2015

रूठ गये तो

रूठ जायेगा रब
तो भी
वजह होगी
कि बनाई दुनिया
उसी ने
संभालेगा वही
सब,
रूठ जायेगा
ज़माना तो
वजह होगी
कि
चाहिये दुनिया
को
अपने मतलब
के लोग
कभी तो
कहीं तो
जरूरत होगी
ज़माने को भी
मेरी,
मगर
मेरे अपने
तुम
हाँ तुम्ही
रूठ गये तो
जीने की वजह
क्या होगी
मालूम नहीं
क्योंकि
अपनों के संग
होने की कोई
वजह तो नही होती
रिश्तों के बीच
अपनेपन की चाह
ये विश्वास की डोरी
बाँधती हमें
बेवजह भी
लेकिन
जब कभी
तलाशते
साथ होने की
वजह
तो अक्सर
अपने- आप से
रूठ जाते हम
खुद-ब- खुद
बेवजह
-----नीरु ' निरुपमा मिश्रा त्रिवेदी'