Friday 30 January 2015

नन्ही शक्सियत

नन्ही शक्सियत
जिसे कहते हैं हम
आने वाला कल
आज  यहीं कहीं
तो खोया होगा ,
हम हाथ में लेकर
जुगनुओं को
खोजते हैं
उसका पता-ठिकाना
और रचते जाते हैं
फूल-पत्ती-मौसम-बहार
नफरत-प्यार के किस्से ,
नज़र उठती है तो दिखती हैं
बड़ी - बड़ी कतारें ,
बस नही दिखते
तो वो अस्पष्ट अक्षर 
जिन्हें खड़ा करके
हाशियों में
हम भूल जाते हैं
थमाकर
पत्थर - सी जिंदगी
चबाने के लिए
दूध के दाँतों से
------ निरुपमा मिश्रा " नीरु "

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