मन के बोल पर
जब जिंदगी
गहरे भाव संजोती है,
विह्वल होकर लेखनी
कहीं कोई
संवेदना पिरोती है,
तुम भी आ जाना
इसी गुलशन में
खुशियों को सजाना
है मुझे,
अभी तो अपनेआप को
तुझमें
पाना है मुझे
Wednesday 25 March 2020
धरती का उल्लास
बंद क्यों भ्रमर राग है,सारिका भी उदास|
कहो तो कब कहाँ गया,धरती का उल्लास|
सुखद पल नवल भोर का,विश्वास अटल रहे,
धीरज संयम नियम का ,करना बस अभ्यास|
निरुपमा मिश्रा 'नीरू'
आप सभी को नव संवत्सर एवं चैत्र नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें....
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