Saturday, 5 July 2025

नींबू की चाय के फायदे



नींबू की चाय कई बीमारियों को दूर रखती है, नियमित सेवन से होते हैं जबरदस्त फायदे...।

नींबू-चाय

दूध वाली चाय पीना सेहत के लिए हानिकारक है साथ ही विशेषज्ञों का कहना है कि आपको दिन में दो कप से ज़्यादा इस चाय का सेवन नहीं करना चाहिए...।

लेकिन,नींबू की चाय पीने से आपको कोई परेशानी नहीं है क्योंकि नियमित रूप से नींबू की चाय पीने से आपकी सेहत अच्छी रहती है. आइए जानें नींबू की चाय पीने के क्या-क्या फायदे हैं....।

स्वास्थ्य संबंधी कई शिकायतों के लिए उपयोगी!

हाल ही में, कई लोग अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हुए हैं. इसलिए, व्यायाम और आहार ने स्वास्थ्य में अत्यधिक महत्व प्राप्त कर लिया है.
यह कहना गलत नहीं होगा कि चाय भारतीयों की कमज़ोरी है हालाँकि पिछले कुछ समय से इस बात को लेकर काफ़ी चर्चा हो रही है कि चाय और कॉफ़ी सेहत के लिए अच्छी नहीं हैं. फिर कई लोगों ने नियमित चाय पीना बंद कर दिया. हालाँकि इससे ब्लैक टी, लेमन टी/लाइम टी जैसी चीज़ों की माँग बढ़ गई. 


नींबू की चाय बनाना आसान है और यह शरीर को साफ करने के काम आती है। अब इसमें कौन से तत्व हैं जो स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हैं? इस बारे में बहुत कम लोग जानते हैं।

नींबू की चाय आखिर है क्या?

नींबू की चाय एक सादी चाय है जिसमें नींबू निचोड़ा जाता है। नींबू इस चाय को एक अलग स्वाद देता है। इसमें सिर्फ पानी, चाय, चीनी और नींबू होता है। चाय में नींबू निचोड़ने से इसका स्वाद ही नहीं बल्कि इसका रंग भी बदल जाता है।

क्लीन्ज़र और डिटॉक्सिफ़ायर

नींबू की चाय का इस्तेमाल शरीर से अनावश्यक विषाक्त पदार्थों को निकालने के लिए किया जाता है। इसके साथ ही नींबू की चाय शरीर में होने वाले कई तरह के संक्रमण और बीमारियों को दूर करने में भी उपयोगी है।

सर्दी और बुखार का इलाज

नींबू की चाय सर्दी और बुखार को कम करने में मदद करती है। इस चाय को और भी उपयोगी बनाने के लिए इसमें थोड़ा सा अदरक मिलाना फायदेमंद होता है। अदरक की चाय पीने से गले की खराश से भी राहत मिलती है। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में भी मदद करती है। यह बारिश के मौसम में होने वाली सर्दी को कम करने में भी मदद करती है।


प्राकृतिक एंटीसेप्टिक

नींबू में प्राकृतिक एंटीसेप्टिक गुण होते हैं। नींबू की चाय में एंटीबैक्टीरियल और एंटीवायरल तत्व होते हैं। इसलिए अगर किसी को पहले से कोई संक्रमण या बीमारी है तो यह उसे ठीक करने में मदद करता है।

त्वचा के लिए उपयोगी

हममें से ज़्यादातर लोग चाहते हैं कि हमारी त्वचा अच्छी और चिकनी रहे। नींबू में विटामिन सी होता है, जो त्वचा के लिए बहुत उपयोगी है। नींबू में कसैले तत्व भी होते हैं इसलिए यह चेहरे पर मुंहासे कम करने और त्वचा संबंधी समस्याओं को कम करने में मदद करता है...।

और भी हैं फ़ायदे....

1: नींबू की चाय पाचन तंत्र को स्वस्थ रखती है। यह शरीर में ऊर्जा पैदा करती है। आप दिनभर तरोताज़ा दिख सकते हैं।

2: दिन में 3-4 बार नींबू की चाय पीने से ब्लड शुगर कंट्रोल में रहता है। कोलेस्ट्रॉल कम होता है।

3: इसमें मौजूद विटामिन सी मुंहासे और काले धब्बे कम करता है। अगर आप इसमें शहद और चीनी मिलाते हैं, तो आपका चेहरा तरोताज़ा दिखेगा।

4: सुबह योग, सूर्य नमस्कार और व्यायाम करने से पहले नींबू की चाय पीने से वजन कम होता है। भूख भी नियंत्रित रहती है।

5: पाचन तंत्र साफ होता है। शरीर से विषाक्त पदार्थ बाहर निकलते हैं। पेट संबंधी कोई बीमारी नहीं होती।

6: इसी तरह अगर इसमें अदरक मिलाकर दिन में 3-4 बार लिया जाए तो जुकाम ठीक हो जाता है।


7: गले की खराश और खांसी ठीक हो जाती है।

8: इसमें शहद मिलाकर पीने से सांस संबंधी बीमारियां नहीं होतीं।

9: पेट हमेशा साफ रहता है।

10 : तनाव के कारण होने वाला सिरदर्द, थकान और सुस्ती दूर होती है।

Thursday, 3 July 2025

पांच प्राण एवं उप प्राण व्याख्या

पाँच प्राण एवं उप प्राण व्याख्या
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प्राणतत्व एक है, पर प्राणी के शरीर में उसकी क्रियाशीलता के आधार पर कई भागों में विभक्त किया गया है। शरीर के प्रमुख अवयव मांस-पेशियों से बने हैं, पर संगठन की भिन्नता के कारण उनके आकार-प्रकार में भिन्नता पाई जाती है। इसी आधार पर उनका नामकरण एवं विवेचन भी पृथक्-पृथक् होता है। मानवी-काया में प्राण-शक्ति को भी विभिन्न उत्तरदायित्व निबाहने पड़ती हैं उन्हीं आधार पर उनके नामकरण भी अलग हैं और गुण धर्म की भिन्नता भी बताई जाती है। इस पृथकता के मूल में एकता विद्यमान है। प्राण अनेक नहीं हैं। उसके विभिन्न प्रयोजनों में व्यवहार पद्धति पृथक है। बिजली एक है, पर उनके व्यवहार विभिन्न यन्त्रों में भिन्न प्रकार के होते हैं। हीटर, कूलर, पंखा, प्रकाश, पिसाई आदि करते समय उसकी शक्ति एवं प्रकृति भिन्न लगती है। उपयोग आदि प्रयोजन को देखते हुए भिन्नता अनुभव की जा सकती है तो भी जानने वाले जानते हैं कि यह सब एक ही विद्युत शक्ति के बहुमुखी क्रिया-कलाप हैं। प्राण-शक्ति के सम्बन्ध में भी यही बात कही जा सकती है। शास्त्रकारों ने उसे कई भागों में विभाजित किया है, कई नाम दिये हैं और कई तरह से व्याख्या की है। उसका औचित्य होते हुए भी इस भ्रम में पड़ने की आवश्यकता नहीं कि प्राणतत्व कितने ही प्रकार का है और उन प्रकारों में भिन्नता एवं विसंगति है। इस प्राण विस्तार को भी ‘‘एकोऽहं बहुस्याम’’ का एक स्फुरण कहा जाता है।




मानव शरीर में प्राण को दस भाग में विभक्त माना गया है। इनमें 5 प्राण और 5 उप प्राण हैं। प्राणमय कोश इन्हीं 10 के सम्मिश्रण से बनता है। 

5 मुख्य प्राण हैं (1) अपान (2) समान (3) प्राण (4) उदान (5) व्यान। 

उपप्राणों को (1) देवदत्त (2) वृकल (3) कूर्म (4) नाग (5) धनंजय नाम दिया गया है।

शरीर क्षेत्र में इन प्राणों के क्या-क्या कार्य हैं? 
इसका वर्णन आयुर्वेद शास्त्र में इस प्रकार किया गया है—

(1) अपान👉 अपनयति प्रकर्षेंण मलं निस्सारयति अपकर्षाति च शक्तिम् इति अपानः ।

अर्थात्👉 जो मलों को बाहर फेंकने की शक्ति में सम्पन्न है वह अपान है। मल-मूत्र, स्वेद, कफ, रज, वीर्य आदि का विसर्जन, भ्रूण का प्रसव आदि बाहर फेंकने वाली क्रियाएं इसी अपान प्राण के बल से सम्पन्न होती हैं।

(2) समान👉 रसं समं नयति सम्यक् प्रकारेण नयति इति समानः ।

अर्थात्👉 जो रसों को ठीक तरह यथास्थान ले जाता और वितरित करता है वह समान है। पाचक रसों का उत्पादन और उनका स्तर उपयुक्त बनाये रहना इसी का काम है। पातञ्जलि योग सूत्र के पाद 3 सूत्र 40 में कहा गया है—‘‘समान जयात् प्रज्वलम्’’ अर्थात् समान द्वारा शरीर की ऊर्जा एवं सक्रियता ज्वलन्त रखी जाती है। 

(3) प्राण👉 प्रकर्षेंण अनियति प्रर्केंण वा बलं ददाति आकर्षति च शक्तिं स प्राणः ।

अर्थात्👉 जो श्वास, आहार आदि को खींचता है और शरीर में बल संचार करता है वह प्राण है। शब्दोच्चार में प्रायः इसी की प्रमुखता रहती है। 

(4) उदान👉 उन्नयति यः उद्आनयति वा तदानः ।

अर्थात्👉 जो शरीर को उठाये रहे, कड़क रखे, गिरने न दे—बह उदान है। ऊर्ध्वगमन की अनेकों प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष क्रियाएं इसी के द्वारा सम्पन्न होती हैं। 

(5) व्यान👉 व्याप्नोति शरीर यः स ध्यानः ।

अर्थात्👉 जो सम्पूर्ण शरीर में संव्याप्त है—वह व्यान है। रक्त-संचार, श्वास-प्रश्वास, ज्ञान-तन्तु आदि माध्यमों से यह सारे शरीर पर नियन्त्रण रखता है। अन्तर्मन की स्वसंचालित शारीरिक गतिविधियां इसी के द्वारा सम्पन्न होती हैं।

👉 इस तरह प्रथम प्राण का कार्य श्वास-प्रश्वास क्रिया का सम्पादन स्थान छाती है। इस तत्व की ध्यानावस्था में अनुभूति पीले रंग की होती है और षटचक्र वेधन की प्रक्रिया में यह अनाहत चक्र को प्रभावित करता पाया जाता है।

द्वितीय👉 अपान का कार्य शरीर के विभिन्न मार्गों से निकलने वाले मलों का निष्कासन, एवं स्थान गुदा है। यह नारंगी रंग की आभा में अनुभव किया है और मूलाधार चक्र को प्रभावित करता है।

तीसरा समान👉 अन्न से लेकर रस-रक्त और सप्त धातुओं का परिपाक करता है और स्थान नाभि है। हरे रंग की आभा वाला और मणिपूर चक्र से सम्बन्धित इसे बताया गया है।

चौथा उदान👉 का कार्य है आकर्षण ग्रहण करना, अन्न-जल, श्वास, शिक्षा आदि जो कुछ बाहर से ग्रहण किया जाता है वह ग्रहण प्रक्रिया इसी के द्वारा सम्पन्न होती है। निद्रावस्था तथा मृत्यु के उपरान्त का विश्राम सम्भव करना भी इसी का काम है। स्थान कण्ठ, रंग बैगनी तथा चक्र विशुद्धाख्य है।

पांचवा व्यान👉 इसका कार्य रक्त आदि का संचार, स्थानान्तरण। स्थान सम्पूर्ण शरीर। रंग, गुलाबी और चक्र स्वाधिष्ठान है।

पांच उप प्राण इन्हीं पांच प्रमुखों के साथ उसी तरह जुड़े हुए हैं जैसे मिनिस्टरों के साथ सेक्रेटरी रहते हैं। प्राण के साथ नाग। अपान के साथ कूर्म। समान के साथ कृकल। उदान के साथ देवदत्त और व्यान के साथ धनञ्जय का सम्बन्ध है। नाग का कार्य वायु सञ्चार, डकार, हिचकी, गुदा वायु। कूर्म का नेत्रों के क्रिया-कलाप कृकल का भूख-प्यास, देवदत्त का जंभाई, अंगड़ाई, धनञ्जय को हर अवयव की सफाई जैसे कार्यों का उत्तरदायी बताया गया है, पर वस्तुतः वे इतने छोटे कार्यों तक ही सीमित नहीं है। मुख्य प्राणों की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित बनाये रखने में उनका पूरा योगदान रहता है। इन प्राण और उपप्राणों के भेद को और भी अच्छी तरह समझना हो तो तन्मात्राओं और ज्ञानेन्द्रियों के सम्बन्ध पर गौर करना चाहिए। शब्द तत्व को ग्रहण करने के लिये कान, रूप तत्व की अनुभूति के लिये नेत्र, रस के लिये जिव्हा, गन्ध के लिए नाक और स्पर्श के लिये जो कार्य त्वचा करती है, उसी प्रकार प्राण तत्व द्वारा विनिर्मित सूक्ष्म संभूतियों को स्थूल अनुभूतियों में प्रयुक्त करने का कार्य यह उप प्राण सम्पादित करते हैं। यह स्मरण रखा जाना चाहिए कि यह वर्गीकरण मात्र वस्तुस्थिति को समझने और समझाने के उद्देश्य से ही किया गया है। अलग-अलग आकृति प्रकृति के दस व्यक्तियों की तरह इन्हें दस सत्ताएं नहीं मान बैठना चाहिए। एक ही व्यक्ति को विभिन्न अवसरों पर पिता, पुत्र, भाई, मित्र, शत्रु सुषुप्त, जागृत, मलीन, स्वच्छ स्थितियों में देखा जा सकता है लगभग उसी प्रकार का यह वर्गीकरण भी समझा जाय।

प्राण शरीर👉 शरीरस्थ प्राण संस्थान के न केवल अस्तित्व का बल्कि गुण, धर्मों तथा क्रिया-कलापों, प्रभावों आदि का भी वर्णन विस्तार पूर्वक भारतीय ग्रन्थों में मिलता है। इस मान्यता को स्थूल विज्ञान बहुत दिनों तक झुठलाता रहा, किन्तु शरीर विज्ञान के सन्दर्भ में जैसे-जैसे उसकी जानकारियां बढ़ रही हैं, प्राण संस्थान के अस्तित्व को एक सुनिश्चित तथ्य के रूप में स्वीकार किया जाने लगा है। भौतिक विज्ञान के स्थूल उपकरणों की पकड़ में भी इस सूक्ष्म सत्ता के अनेक प्रमाण आने लगे हैं।

प्राण तत्व को ही एक चेतन ऊर्जा (लाइव एनर्जी) कहा गया है। 
भौतिक विज्ञान के अनुसार एनर्जी के छह प्रकार माने जाते हैं—
1 ताप (हीट) 
2 प्रकाश (लाइट) 
3 चुम्बकीय (मैगनेटिक) 
4 विद्युत (इलेक्ट्रिकसिटी) 
5 ध्वनि (साउण्ड) 
6 घर्षण (फ्रिक्शन) अथवा यांत्रिक (मैकेनिकल)। 
एक प्रकार की एनर्जी को किसी भी दूसरे प्रकार की एनर्जी में बदला भी जा सकता है। शरीरस्थ चेतन क्षमता—लाइव एनर्जी इन विज्ञान सम्मत प्रकारों से भिन्न होते हुए भी उनके माध्यम से जानी समझी जा सकती है। एनर्जी के बारे में वैज्ञानिक मान्यता है कि वह नष्ट नहीं होती बल्कि उसका केवल रूपान्तरण होता है। यह भी माना जाता है कि एनर्जी किसी भी स्थूल पदार्थ से सम्बद्ध रह सकती है, फिर भी उसका अस्तित्व उससे भिन्न है और वह एक पदार्थ से दूसरे पदार्थ में स्थानांतरित (ट्रांसफर) की जा सकती है। प्राण के सन्दर्भ में भी भारतीय दृष्टाओं का यही कथन है। अब तो पाश्चात्य वैज्ञानिक भी इसे स्वीकार करने लगे हैं।

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