मन के बोल पर
जब जिंदगी
गहरे भाव संजोती है,
विह्वल होकर लेखनी
कहीं कोई
संवेदना पिरोती है,
तुम भी आ जाना
इसी गुलशन में
खुशियों को सजाना
है मुझे,
अभी तो अपनेआप को
तुझमें
पाना है मुझे
Saturday 14 November 2015
तितली के रंग
बचपन की प्यारी ताज़गी का ढंग अभी बाकी है
लम्हों में उनके जिंदगी का संग अभी बाकी है
खो न जाये कहीं बचपन-सुकून-सपनों के बगीचे
नन्ही हथेली में तितली का रंग अभी बाकी है
----- निरुपमा मिश्रा
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