Tuesday 13 October 2015

क्यों

पत्थरों में ढाल दिया
अस्तित्व
और
यूं ही जीवन बीत गया
क्यों,
सबके गीतों को तो बोल दिये
अपने
पर स्वयं के सुख-दुःख का
खो संगीत गया
क्यों,
इंसान ही तो बेजान नही
कोई
स्पंदन तो कहीं बाकी
फर्ज निभा कर भी मिले पराजय
जग ये हरदम
जीत गया
क्यों,,
---- नीरु 'निरुपमा मिश्रा त्रिवेदी' 

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