Saturday 18 July 2015

अज्ञानी

चलो, उठाओ किताबी बातें
कहीं और लेकर जाओ,
यहाँ हर शब्द
धुंधले नज़र आते हैं
जब अनुभव से परे
बातें बताते हैं,
खुल जाये मन की आँखें
तो खोल लो,
अपनी भावनायें
भी तो तौल लो,
अपने फर्ज़ से मुँह छिपाना,
परछाई-मृगतृष्णा
के पीछे भागना
क्या ज्ञान कहलाता,
रहने दो
फिर तो मुझे
अज्ञानी बने रहना
भाता ,,,,
----- नीरु 'निरुपमा मिश्रा त्रिवेदी'

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